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मसीहा
एक जलता हुआ दिया अक्सर मुझसे कुछ कहता है
हर तूफां में एक मसीहा रहता है
फूलों में रंग, जल में तरंग
खुशबू बन हवा के संग-संग
वही तो ..... मंद-मंद बहता है
हर तूफां में एक मसीहा रहता है
डूब रहा जो मजधार में
तिनका बन बस;
उसके लिये ही जो बहता है
हर तूफां में एक मसीहा रहता है
एक जलता हुआ दिया ..... ... ..... ..... ....
हर तूफां में एक मसीहा रहता है
फूलों में रंग, जल में तरंग
खुशबू बन हवा के संग-संग
वही तो ..... मंद-मंद बहता है
हर तूफां में एक मसीहा रहता है
डूब रहा जो मजधार में
तिनका बन बस;
उसके लिये ही जो बहता है
हर तूफां में एक मसीहा रहता है
एक जलता हुआ दिया ..... ... ..... ..... ....
तुझसे प्यार किया हमने
बहुत मुद्दत से तेरा इंतजार किया हमने
खुद को मिटा कर भी तुझसे प्यार किया हमने
परवाना क्या मिटेगा!! शमा की चाहत में
इस कदर टूट कर तुझसे प्यार किया हमने
चली ज़रा हवा ......... और मैं बिखर जाऊँ,
इस कदर खुद को बेकरार किया हमने।
तेरी एक हाँ ........
मेरे जीने की वजह हो गयी है
छोड़ दूँ मैं दुनिया
जो इनकार किया तूने
बहुत मुद्दत से तेरा ....................
तुझसे प्यार किया हमने .................
तेरी नाराजगी ...........
तेरी नाराजगी;
जो मुझको पल भर भी नही भाती है,
ग़र भुलाना भी चाहूँ;
तेरी याद है कि आ ही जाती है।
माना की मैं गुनाह-गार हूँ,
अब तेरी निगाहों में;
सच है कि ये बस;
तुम ही बसती हो मेरी सदाओं में
तुझ से दूर रहकर अब न जी पाऊँगा मैं
तेरे लिए हर खुशी अपनी बस लुटाऊँगा मैं
टूट कर जो कतरा-कतरा; क्यों न बिखर जाऊँ मैं
फिर भी न अब तुझको .....भुला पाऊँगा मैं
तुम वो नही .............
तुम वो नही जिसकी मुझे ....तलाश थी।
तुम न रहे वो;
जिसकी मेरी निगांहों को प्यास थी।
बदल गयी हो तुम गैरों की तरह;
न रहे तुम वो ............
जो मेरे लिए ख़ास थी।
हमराज़ बन हर राज़ छुपाया तुमने
नही वो तुम ............
जिससे मुझे वफ़ा की आस थी।
तोड़ दिया है तुम ने मेरे यकीन का दरपन
न बन सके तुम वो .......
जो मेरा अटूट विश्वास थी।
तुम वो नही जिसकी मुझे ....तलाश थी।
मैं तनहा रह गया
मुस्कराहट की वजह बनाना था जिसे
वो आंसुओ की वजह बन कर रह गया
वो आंसुओ की वजह बन कर रह गया
इंतजार मे जिस वर्षा के जाने कितने ही सावन,
वो बरसा इस कदर की सब कुछ बह गया
था मै तनहा पहले भी, तुम्हारे आने से
जाने क्यों तुम्हारे जाने से फिर मैं तनहा रह गया .................
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