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मेरी बिटिया


















बचपन को पाने की तृष्णा,
बेटी बन कर घर आयी।
बरसो से सूने आँगन में,
कोयल बनकर वह गायी।
घर के घुप्प अँधेरे में,
जुगनू बन कर वह छायी।
नागफनी से मन उपवन में,
रजनीगन्धा महकायी।
नन्ही की किलकारी में,
मैने अपना बचपन पाया।
जो बिटिया ने उँगली थामी,
संसार सिमट उसमें आया।

जीवन अब इक नयी आस है,
हर दिन उसके साथ ख़ास है।
उसको बस मैं हँसता देखूँ,
नयनों में बस यही प्यास है।
चंदा सी वह बढ़ती जाए,
मुख पर पूनम का प्रकाश है।
मेरी चंदा सूरज वो है,
उसकी खुशियों का एहसास है।
जग की रीत निभानी है,
उसकी डोली भी जानी है।
मिला सपनों का राजकुमार,
मेेरी आँखों में पानी है।
चमकेगी मेरी बिटिया,
दूजे घर भी जाकर।
यकीं है मुझको ना भूलेगी,
मनचाहा वर पा कर।
पर नन्ही पापा की बिटिया,
अब भी मेरे साथ है।
सब बोलें है बाबा की बिटिया,
देखो सब से ख़ास है।


सतगुरू शर्मा

पथिक


मत हिम्मत तू हार पथिक,
पथ मेें कई बहार पथिक।


घनघोर है कारी रात तो क्या?
देखो आगे भोर खड़ी; ले सूरज का हार पथिक।


माना की पथ बड़ा विकट है!
संघर्ष है जीवन का सार पथिक।


तपा नही जो कनक ताप में,
क्या वह कुन्दन-हार पथिक?


उठो बढ़ो और हिम्मत बाँधों,
यूँ ही मत जाओ.. हार पथिक।


मानव जीवन मिला भाग्य से, 

जाए न बेकार पथिक।

मत हिम्मत तू हार पथिक, 

पथ मेें कई बहार पथिक।

सतगुरू शर्मा (मासूम)

सावन की आमद


रिमझिम घटा छाई,
भरे ताल-तलैया, खढ्ढे
फुदक-फुदक गौरैया देखो खूब नहाई


मुन्नी मुडेर पर भागी
चंद बूँदें बारिश की
नन्ही हथेली पर चुरा लाई।


सौंधी महक माटी की
हर गली हर तरफ है सुहाई


पपिहा बैठ पेड़ पर
कोयल संग तान लगाये।
काका चैपालों में देखो
राग मल्हार सुनायेें।

सतगुरूमासूम

ख़ामोशी का इक अफ़साना.

















ख़ामोशी का इक अफ़साना... तेरा भी है!
ख़ामोशी का इक अफ़साना... मेरा भी है।

रात हो गहरी कितनी स्याह!....2
एक सवेरा मेरा भी है,
एक सवेरा तेरा भी है।।

दिन का साथी सदा उजाला,
चटख़ और रूपहला भी है।

रात दुखी एक पहर हो,
ख़ामोशी की चादर ताने;
देखो साथ अंधेरा भी है।

बसंत-बाग में बहुत खिला है,..2
पर पतझड़ भी; देखो यारो;
मेरा भी है, तेरा भी है।।

खुशियों के खूब महल बनाएँ,
गम का भी क्या.. गम का भी क्या,
इक-रैनबसेरा भी है?

ख़ामोशी का इक अफ़साना...
तेरा भी है और मेरा भी है।

सतगुरूमासूम-दिल
9559976047