तेरी नाराजगी;
जो मुझको पल भर भी नही भाती है,
ग़र भुलाना भी चाहूँ;
तेरी याद है कि आ ही जाती है।
माना की मैं गुनाह-गार हूँ,
अब तेरी निगाहों में;
सच है कि ये बस;
तुम ही बसती हो मेरी सदाओं में
तुझ से दूर रहकर अब न जी पाऊँगा मैं
तेरे लिए हर खुशी अपनी बस लुटाऊँगा मैं
टूट कर जो कतरा-कतरा; क्यों न बिखर जाऊँ मैं
फिर भी न अब तुझको .....भुला पाऊँगा मैं
veri nice
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