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ख़ामोशी का इक अफ़साना.

















ख़ामोशी का इक अफ़साना... तेरा भी है!
ख़ामोशी का इक अफ़साना... मेरा भी है।

रात हो गहरी कितनी स्याह!....2
एक सवेरा मेरा भी है,
एक सवेरा तेरा भी है।।

दिन का साथी सदा उजाला,
चटख़ और रूपहला भी है।

रात दुखी एक पहर हो,
ख़ामोशी की चादर ताने;
देखो साथ अंधेरा भी है।

बसंत-बाग में बहुत खिला है,..2
पर पतझड़ भी; देखो यारो;
मेरा भी है, तेरा भी है।।

खुशियों के खूब महल बनाएँ,
गम का भी क्या.. गम का भी क्या,
इक-रैनबसेरा भी है?

ख़ामोशी का इक अफ़साना...
तेरा भी है और मेरा भी है।

सतगुरूमासूम-दिल
9559976047