ऐ जिंदगी! क्यों?
क्यों मुझको, हर मोड़ पर तूने छला।
आया था उज़ालों की ख़्वाहिशें ले कर,
आखि़री सफ़र तक मुझको अंधेरा मिला।।
ऐ जिंदगी! मुझको हर मोड़ पर तूने छला...
क्या ख़ता थी मेरी,
कि सबकी खुशी चाही मैनें,
मेरी खुशियों कि चाह रखने वाला
उम्र गुज़री पर एकभी ना मुझको मिला ।
ऐ जिंदगी! मुझको हर मोड़ पर तूने छला...
सावन की झीनी फुहार समझ
ऐ जिंदगी! तुझको गले लगा बैठा
वक़्त से जो नज़र मिलायी,
काँटों का इक हार मिला।
ऐ जिंदगी! मुझको हर मोड़ पर तूने छला...
सतगुरु 13/09/19