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खौफ़ के सौदागर


खौफ़ के सौदागर
मौत बाँटने निकले हैं।
धरा लहू से लाल हुई,
जिनको मारा वे तेरे अपने है।

सपनों की कलियाँ पल भर न मुसकाई
बारूद के धुएँ में है नन्हीं कलियाँ मुरझाई

भविष्य को तुमने आज मिटाया,
खुद खुदा भी रचना पर है शरमाया।
मानव-पिचाश बन देखो,
खुद शैतान रूप बदल कर आया।

सतगुरू शर्मा
09559976047

उसकी वो बोलती आँखें,
ख़ामोश जुबां मे जाने क्या—क्या कह गयीं
कि मचल उठे जज्बात
जागी कलम और
अल्फाज कागज पर बिखर गये।

सतगुरू शर्मा