dil ki duniya guru
यादों का कांरवां मासूम गुरू लखनवी के साथ
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बंद पलकों से रिसता...
बंद पलकों से रिसता मेरा ग़म,
बंद पलकों से रिसता मेरा ग़म
था खुली आंखों का हसीं ख़्वाब,
बंद की पलकें हुई आंख नम।
चाहतें, वफाएं हममे,
ना थोड़ी भी थी कम
किस्मत से मिला धोखा,
बेवफ़ा निकले सनम।
बंद पलकों से रिसता...
सोचा था होगी,
कहीं दर्द-ए-इंतहा
जाने क्यो नही होता,
ये मेरा दर्द खतम।
खतम हो रही है जिंदगी बस यूं ही
मिलता नही मुझको, कातिल-ए-हमदम।
यादों के लिफ़ाफे
सीने से लगाए फिरता हूं
दे कोई मुझको आग,
हो थोड़ा बोझ कम।
कि बंद पलको से रिसता......
सतगुरू शर्मा
05/04/2023
सूर्ख लाल अरमानों से लदा,
सेमल का पेड़...
हवा के हर-झोके के साथ,
कुछ फूलों को राह पर गिरा रहा है।
जाने-अनजाने में..
लोगों के पाँव तले, कुचलने के लिए!...
मेरे अरमान, मेरी खुशियाँ...
अभी चंद रोज़ ही हुए थे,
बहार को आये हुए
मगर..
मगर वक़्त के बेरहम थपेड़ों को ना सह सके!...
मेरे अरमान, मेरी खुशियाँ...
एक गुलमोहर है,
खुशी से झुमती शाखें, मद्धम-मद्धम झरता...
सुर्ख गुलाल के मानिंद,
महबूब के गालो को चूमता हुआ।
और एक मैं हूँ,
तरसता हुआ फ़ागुन लिए ....
सतगुरू शर्मा
8/3/23
है नये वर्ष की आमद
हवा सर्द-सर्द है, जमीं में थोड़ी नमी है।
रगों में उबाल है, ना जोश में कमी है।।
है नये वर्ष की आमद, नव-चेतना का वास है।
घड़ियाँ थोड़ी मंद है, सुइंयाँ कुछ थमीं सी हैं।।
चेहरें कुछ खिले से हैं,
दोस्त पुराने कुछ मिले से हैं।
पुराने जख़्मों को शायद मरहम मिला है,
बीत गया न उससे कोई.. गिला है।।
नये साल से उम्मीद का ये तोहफ़ा मिला है,
न मिला सका जो उसका थोड़ा सा गिला है।
कोई रूका है अब तक जो ये वक़्त रूक जायेगा?
ये तारीख़ों का अपना पुराना सिलसिला है।।
सतगुरू
कहते है लोग मैं दीवाना हूँ
अधूरी मोहब्बत का अफ़साना हूँ,
भरी भीड़ में इक बेगाना हूँ।
है साथ तेरे यादों की मस्ती
कहते है लोग मैं दीवाना हूँ।।
दीवाली की रात है
दियों की बारात है
खुश है जो अंधेरों में,
मैं वही आशियाना हूँ।
है हसरत-ऐ-जिंदगी
बस फ़कत इतनी
तेरी चाहत में जान जाए
बस वही परवाना हूँ।
दर्द में सुकूं की...
तलाश लिए फिरता हूँ।
कोई बताए उनको
ऐसा सिफ़त-ए-दिल मस्ताना हूँ ।
Satguru Sharma
ऐ मेरी जिंदगी! मैनें देखा है तुझको....
ऐ मेरी जिंदगी
मुझे है ये यकीं
तू मिलेगी मुझको
बस यूं ही कहीं
कि मैनें देखा है तुझको
फूलों में हंसते, बरखा में बरसते
सूखी माटी में पानी की
इक बूंद को तरसते हुए
ऐ मेरी जिंदगी!
मैनें देखा है तुझको....
टूटे आशियानों में सिसकते हुए
बेबस निगाहों से रिसते हुए
ऐ मेरी जिंदगी!
मैनें देखा है तुझको....
सुबह के इंतजार में,
रात को पल-पल ढ़लते हुए
नदिया की धार में, लोगो के प्यार में
कल-कल बहते हुए
ऐ मेरी जिंदगी!
मैनें देखा है तुझको....
शहनाइयों के शोर में
सिसकियों को घुटते हुए,
कुछ बनते हुए, कुछ बिगड़ते हुए,
पल-पल बदलते, रिश्तों के दौर में
ऐ मेरी जिंदगी!
मैनें देखा है तुझको....
यादों के धुएँ को फ़िज़ा में...2
अहिस्ता-अहिस्ता घुलते हुए।
ऐ मेरी जिंदगी!
मैनें देखा है तुझको....
सतगुरू शर्मा
12/09/2022
‘शाम हो गई।’
कि अभी सूरज उगा था,
कि अभी शाम हो गई।
मज़िल कि ओर बस चला ही था
कि पहले ही पड़ाव पे शाम हो गई
रिश़्तोें कि कलियां खिली हीं थीं
कि ढ़ल गया प्यार और....
शाम हो गई।
कि अभी कुछ ही दिन तो हुए थे
तुमसे मिले ....2
इतनी भी क्या जल्दी थी? कि यूं...
तुम हम को छोड़ चले?
अभी तो कुछ कहा भी नही
अभी तो कुछ सुना भी नही
चंद बातें क्या हुई दऱमयां
कि मुलाकात की शाम हो गई
बुझने लगें हैं अब, निगाहों के चराग़ भी
लगता है कि जिंदगी की शाम हो गई
कि एक शाम वो भी थी... 2
जब तुम मेरे साथ थे
दरवाजे़ं पे ठहरी निगाहें पूछती है तुम्हारा पता
कि तेरे आने से पहले ही शाम हो गई
सोचता हूं कि
लोग जीते है खुद के वास्ते
मग़र देखते ही तुम्हें
जिंदगी तेरे नाम हो गई।
कि इस कद़र गुज़री है कमबख़्त जिंदगी
अभी दिन निकला कि अभी शाम हो गई।।
सतगुरू
27.11.2021
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