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मेरी बिटिया


















बचपन को पाने की तृष्णा,
बेटी बन कर घर आयी।
बरसो से सूने आँगन में,
कोयल बनकर वह गायी।
घर के घुप्प अँधेरे में,
जुगनू बन कर वह छायी।
नागफनी से मन उपवन में,
रजनीगन्धा महकायी।
नन्ही की किलकारी में,
मैने अपना बचपन पाया।
जो बिटिया ने उँगली थामी,
संसार सिमट उसमें आया।

जीवन अब इक नयी आस है,
हर दिन उसके साथ ख़ास है।
उसको बस मैं हँसता देखूँ,
नयनों में बस यही प्यास है।
चंदा सी वह बढ़ती जाए,
मुख पर पूनम का प्रकाश है।
मेरी चंदा सूरज वो है,
उसकी खुशियों का एहसास है।
जग की रीत निभानी है,
उसकी डोली भी जानी है।
मिला सपनों का राजकुमार,
मेेरी आँखों में पानी है।
चमकेगी मेरी बिटिया,
दूजे घर भी जाकर।
यकीं है मुझको ना भूलेगी,
मनचाहा वर पा कर।
पर नन्ही पापा की बिटिया,
अब भी मेरे साथ है।
सब बोलें है बाबा की बिटिया,
देखो सब से ख़ास है।


सतगुरू शर्मा