बाबा की मैं प्यारी बिटिया,
घर की मैं नन्हीं सी चिड़िया,
मुझसे ही गुलजार था अंगना,
फिर क्यों भेजा अंजाने संग,
कह कर अब, तेरा है सजना,
मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 1
हम सब हुए पराये अब,
हुआ पराया घर ये अंगना।
घर सजना का तेरा है अब,
बोली माँ पहनाकर कंगना।।
मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 2
नाजु़क कंधों पर बोझ बड़ा था,
कमर पे चाभी का एक कड़ा था।
बचपन अब मैं छोड़ आयी थी,
घर-घरौंदे, खेल-खिलौने
सब के सब मैं तोड़ आयी थी।
मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 3
माँ-बाबा पर रोष बड़ा था,
मन कच्ची-मिट्टी का एक घड़ा था।
याद में आँसू बहते थे,
बह-बह कर मुझसे कहते थे।
मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 4
धीरे-धीरे वक़्त भी गुजरा,
साजन का घर अब, मेरा था।
बाबुल का घर रैन-बसेरा,
सजन घर रोज सबेरा था।।
मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 5
मुझको भी मिल गयी थी अब,
मेरे आंगन की चुन-मुन चिड़िया।
वह भी थी, बाबा की गुड़िया
घर भर की खुशियों की पुड़िया।।
मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 6
बचपन मेरा लौट आया था,
वक़्त ने मुझको समझाया था।
जीवन के पल-पल को जीना
अनुभव दरपन दिखलाया था।।
मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 7
सतगुरू शर्मा
29-09-2018