Search This Blog

बाबा की बिटिया


बाबा की मैं प्यारी बिटिया,
घर की मैं नन्हीं सी चिड़िया,
मुझसे ही गुलजार था अंगना,
फिर क्यों भेजा अंजाने संग,
कह कर अब, तेरा है सजना,

मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 1

हम सब हुए पराये अब,
हुआ पराया घर ये अंगना।
घर सजना का तेरा है अब,
बोली माँ पहनाकर कंगना।।

मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 2

नाजु़क कंधों पर बोझ बड़ा था,
कमर पे चाभी का एक कड़ा था।
बचपन अब मैं छोड़ आयी थी,
घर-घरौंदे, खेल-खिलौने
सब के सब मैं तोड़ आयी थी।

मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 3 

माँ-बाबा पर रोष बड़ा था,
मन कच्ची-मिट्टी का एक घड़ा था।
याद में आँसू बहते थे,
बह-बह कर मुझसे कहते थे।

मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 4

धीरे-धीरे वक़्त भी गुजरा,
साजन का घर अब, मेरा था।
बाबुल का घर रैन-बसेरा,
सजन घर रोज सबेरा था।।

मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 5

मुझको भी मिल गयी थी अब,
मेरे आंगन की चुन-मुन चिड़िया।
वह भी थी, बाबा की गुड़िया
घर भर की खुशियों की पुड़िया।

मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 6

बचपन मेरा लौट आया था,
वक़्त ने मुझको समझाया था।
जीवन के पल-पल को जीना
अनुभव दरपन दिखलाया था।। 

मुझसे ही गुलजार था अंगना ... ... ... 7 


सतगुरू शर्मा

29-09-2018

भीगा सावन



बाहर बरखा बरस रही है,
अंदर सूखा सावन है।
मन की बात समझे ना
जो मेरा मनभावन है।।

बाहर झिर-झिर झिरता सावन,
मान का ताप बढ़ाए है।
टिप-टिप बारिश की बूंदें,
विरह का राग सुनाए है।।

गरज-गरज कर, बरस-बरस कर;
जो तुमको पास हमारे लाए थे।
वही है मेघा वही है बिजली,
क्यों रह-रह कर हमें डराये रे।।

बूंदों का अब रुख पे गिरना,
याद पुरानी लाए है।
टूट-टूट कर दिल ये रोता
पल-पल तुम्हे बुलाए है।।

सतगुरू शर्मा
03.08.2018

एक सपना मीठा सा...


आँखों के गीले कोरों से 
आज कुछ यादें बह निकलीं,
कि आज फिर पुराने दिनों की याद में
दिल भर आया,

यह सख़्त और मजबूत इंसान
आज फिर बच्चा बनके
लिपट माँ से खूब रोया,

कि आज फिर बरसो बाद 
उसकी हथेली ने मेरे माथे को चूमा,
और सब..
और सब उलझनों को भूल
आज फिर मैं सुकून से सोया,

पुराने बक्से में बंद 
मेरे बचपन का खिलौना..
क्या निकला!
कि मेरा बचपन मेरे अंदर से झाँकने लगा 
जिसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया,
आज फिर वह बचपन लौट आया,

माँ के हाथों की खीर खाकर
वही स्वाद वही लज़्जत ...
शायद मेरा बचपन ...

इक आहट और सपना टूटा!!!
मगर आँखों के किनारे अब भी गीले थे
कि बचपन की ख़ुश्बू से
अब भी मेरा मन महक रहा था।

एक सपना मीठा सा...

सतगुरू शर्मा

इक तरफ वो है, इक तरफ हम...


इक तरफ वो है, 
इक तरफ हम...2
वो बेवफ़ा होकर खुश!
हम बावफ़ा आँख नम।।

इक तरफ वो है, इक तरफ हम...

वो भूल बैठा है हमको, 
जो कभी था मेरा सनम।
उसकी हर भूल को नादानी समझ बैठे,
उस बेवफ़ा यार में थी थोड़ी वफ़ा कम।।

इक तरफ वो है ...

कितना वक़्त गुज़रा ...2
मगर यादों से ना निकल पाये हम,
उजड़ी मुहब्बत के दयारों में भी
यादों के दीप जलाए हम।

इक तरफ वो है ...

मेरी मुहब्बत का सिला 
मुझको ठोकरों से ही मिला,
मेरी मुहब्बत बेवफा हो गयी
है रब़ से मुझको इतना सा गिला।

इक तरफ वो है ...

माना की आज तू,
सिक्कों में तुली है।
ये खुशियाँ है चंद लम्हों की,
किसको उमर भर मिली हैं।

इक तरफ वो है ...

ठुकरा कर मेरी पाक मुहब्बत,
ये जो तूने दौलत पाई है।
मुहब्बत खुदा की नेमत है
जो नादानी से ठुकराई है।।

इक तरफ वो है ...

ना सुकूं रहेगा 
ना चैन पायेगी,...2
मगर मेरे प्यार की खुश्बू..2 
ताकयामत फ़िज़ा से आयेगी।

इक तरफ वो है ...

मेरा क्या है? मेरे साथ,
तेरी मुहब्बत का साया है।
मिली किसेे यहाँ सच्ची मुहब्बत?
कौन है जो इसको पाया है?

इक तरफ वो है ...

©सतगुरू शर्मा

प्यार के किस़्से.....


प्यार के किस़्से अब पुराने हो गए,
मिलते नही अब हीर-रांझा, कितने जमाने हो गए।

हम-तुम दो बदन इक जान थें,
वो दिले-जज़्बात अब, फ़कत अफसाने हो गए।

जरुरी तो नही कि प्यार जाहिर ही किया जाए,
कुछ तो कहती थी मेरी निगाहें, कि अल्फ़ाज़ खामोश तराने हो गए।

मिलती कहाँ हैं अब निगाहें, जिनमें वफ़ा का दीद हो,
पिला दे साकी बेखुदी तक, कि नशीले-नयन पैमानंे हो गए।

बहोत कहना था मुझको,....2
कभी सुन न पाये तुम, कभी कह न पाये हम,
जाने भी दो अब, कि सब किस्से पुराने हो गए।

प्यार के किस़्से अब पुराने हो गए,
वो दिले-जज़्बात अब, फ़कत अफसाने हो गए।

सतगुरू
24.06.2018

बेवफ़ा यार
















निगाह फेरने का हुनर तुमको खूब आता है,

तारीख़ गवाह है हुस्न और वफ़ा साथ कब रह पाता है


यकीं था मुझको..

बदलेगा तू वक़्त के हाथों मजबूर हो कर

मालूम ना था मौसम के मानिंद, 

तू पल में इस तरह बदल जायेगा।


जो थकते नही थे ..2

प्यार की कसमें खा—खा कर,

वो महबूब, मेरी मुहब्बत का सर

अपने पैरों से कुचल कर जायेगा।


चलो अच्छा हुआ ....2

मेरा भरम तो टूटा,

थोड़ा वक़्त गुजरा है, 

बाकी भी गुजर जायेगा।


मुहब्बत की लाश कांधें पर रख कर..2

बता कि तू कितनी दूर और जायेगा।


मैं तो अपनी पाक—मुहब्बत का हवाला दे दूँगा,

तू बता मालिक को कयामत पे क्या मुँह दिखायेगा?


सतगुरू

26 मार्च 2018

बेवफ़ा सहर

बेवफ़ा सहर











तेरी यादों का चराग़ थाम हाथों में, इंतज़ार हम सहर का करते रहे।
ना थमा तेरी यादों का कारवां, ना वो बेवफ़ा सहर आयी।।

पत्थर के सनम



दिल पत्थर यह दुनिया पत्थर,
पत्थर के हो गये सनम।
हंसी लबों की सबने देखी,
ना देखी थी आँखें नम।

दिल पत्थर यह दुनिया पत्थर,
पत्थर के हो गये सनम।

हम भी अब पत्थर के बन गये,
मन के ताप से सपने जल गये।
अरमां उड़ गए बन के शबनम,
दे गयी मुझको आंखें वह नम।

दिल पत्थर यह दुनिया पत्थर,
पत्थर के हो गये सनम।

काश की दिल पत्थर का होता,
कभी किसी का दिल ना रोता।
काँच के जैसे बात-बात पर,
टूट-टूट न सपने खोता।

दिल पत्थर यह दुनिया पत्थर,
पत्थर के हो गये सनम।

सनम ना होते, रंज ना होता
धोखे का तब तंज ना होता
सब कुछ होता इस जहां में,
मगर-बेवफा सनम ना होता।

दिल पत्थर यह दुनिया पत्थर,
पत्थर के हो गये सनम।

सतगुरू
15/02/2018