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एक सपना मीठा सा...


आँखों के गीले कोरों से 
आज कुछ यादें बह निकलीं,
कि आज फिर पुराने दिनों की याद में
दिल भर आया,

यह सख़्त और मजबूत इंसान
आज फिर बच्चा बनके
लिपट माँ से खूब रोया,

कि आज फिर बरसो बाद 
उसकी हथेली ने मेरे माथे को चूमा,
और सब..
और सब उलझनों को भूल
आज फिर मैं सुकून से सोया,

पुराने बक्से में बंद 
मेरे बचपन का खिलौना..
क्या निकला!
कि मेरा बचपन मेरे अंदर से झाँकने लगा 
जिसे मैं बहुत पीछे छोड़ आया,
आज फिर वह बचपन लौट आया,

माँ के हाथों की खीर खाकर
वही स्वाद वही लज़्जत ...
शायद मेरा बचपन ...

इक आहट और सपना टूटा!!!
मगर आँखों के किनारे अब भी गीले थे
कि बचपन की ख़ुश्बू से
अब भी मेरा मन महक रहा था।

एक सपना मीठा सा...

सतगुरू शर्मा

इक तरफ वो है, इक तरफ हम...


इक तरफ वो है, 
इक तरफ हम...2
वो बेवफ़ा होकर खुश!
हम बावफ़ा आँख नम।।

इक तरफ वो है, इक तरफ हम...

वो भूल बैठा है हमको, 
जो कभी था मेरा सनम।
उसकी हर भूल को नादानी समझ बैठे,
उस बेवफ़ा यार में थी थोड़ी वफ़ा कम।।

इक तरफ वो है ...

कितना वक़्त गुज़रा ...2
मगर यादों से ना निकल पाये हम,
उजड़ी मुहब्बत के दयारों में भी
यादों के दीप जलाए हम।

इक तरफ वो है ...

मेरी मुहब्बत का सिला 
मुझको ठोकरों से ही मिला,
मेरी मुहब्बत बेवफा हो गयी
है रब़ से मुझको इतना सा गिला।

इक तरफ वो है ...

माना की आज तू,
सिक्कों में तुली है।
ये खुशियाँ है चंद लम्हों की,
किसको उमर भर मिली हैं।

इक तरफ वो है ...

ठुकरा कर मेरी पाक मुहब्बत,
ये जो तूने दौलत पाई है।
मुहब्बत खुदा की नेमत है
जो नादानी से ठुकराई है।।

इक तरफ वो है ...

ना सुकूं रहेगा 
ना चैन पायेगी,...2
मगर मेरे प्यार की खुश्बू..2 
ताकयामत फ़िज़ा से आयेगी।

इक तरफ वो है ...

मेरा क्या है? मेरे साथ,
तेरी मुहब्बत का साया है।
मिली किसेे यहाँ सच्ची मुहब्बत?
कौन है जो इसको पाया है?

इक तरफ वो है ...

©सतगुरू शर्मा