छलकती आँखों का सैलाब,
अब तक नही टूटा था।
मेरे दर्द का एक भी कतरा,
अब तक ना आँखों से छूटा था।।
ख़फा हुआ तू मुझसे कई दफ़ा पहले भी,
मगर इस क़दर; हमसे ना कभी रूठा था।
धुंधली आँखों से जो मैने आज देखा है,
कि तेरे सिवा यह जहान; पूरा का पूरा झूठा था।।
एक बेगाने से बहुत कुछ पाया मैने
दुनिया ने तो सिर्फ मुझको लूटा था।
फलक का इक चमकता सितारा था कभी मैं
तुझे पाने की चाह में ही तो टूटा था।।
सतगुरू शर्मा (मासूम)
30 Aug 2017