‘शाम हो गई।’
कि अभी सूरज उगा था,
कि अभी शाम हो गई।
मज़िल कि ओर बस चला ही था
कि पहले ही पड़ाव पे शाम हो गई
रिश़्तोें कि कलियां खिली हीं थीं
कि ढ़ल गया प्यार और....
शाम हो गई।
कि अभी कुछ ही दिन तो हुए थे
तुमसे मिले ....2
इतनी भी क्या जल्दी थी? कि यूं...
तुम हम को छोड़ चले?
अभी तो कुछ कहा भी नही
अभी तो कुछ सुना भी नही
चंद बातें क्या हुई दऱमयां
कि मुलाकात की शाम हो गई
बुझने लगें हैं अब, निगाहों के चराग़ भी
लगता है कि जिंदगी की शाम हो गई
कि एक शाम वो भी थी... 2
जब तुम मेरे साथ थे
दरवाजे़ं पे ठहरी निगाहें पूछती है तुम्हारा पता
कि तेरे आने से पहले ही शाम हो गई
सोचता हूं कि
लोग जीते है खुद के वास्ते
मग़र देखते ही तुम्हें
जिंदगी तेरे नाम हो गई।
कि इस कद़र गुज़री है कमबख़्त जिंदगी
अभी दिन निकला कि अभी शाम हो गई।।
सतगुरू
27.11.2021