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तेरी यादों के साथ जा बैठे...


चार-पल जो हुए तन्हा!
तेरी यादों के साथ जा बैठे...
उम्र-ए-तमाम का मर्ज़ है ये यारों
बरा-ए-दर्द हम सब कुछ लुटा बैठे।
सुकूं की चाहत लिए...


कुछ लम्हा तिरे साथ क्या चले...2
तमाम उम्र का सुकूं, 
बस यूं ही गवां बैठे।


अब तो तेरी याद है... और तन्हाई है
कभी रोये उनके साथ, कभी मुस्कुरा बैठे।


अजीज़ है.. तेरा ग़म भी हमको...2
कि यूं ही नही हम,
तन्हाई से हाथ मिला बैठे।


ना पाने की कोई जुस्तुजू बाकी
ना कोई अब खोने का मलाल है।
बस यादों का साथ, रह गया बाकी,
उनसे ही कारवां सजा बैठे।


सतगुरू शर्मा
15/04/2023

बंद पलकों से रिसता...


बंद पलकों से रिसता मेरा ग़म, 
बंद पलकों से रिसता मेरा ग़म
था खुली आंखों का हसीं ख़्वाब, 
बंद की पलकें हुई आंख नम।

चाहतें, वफाएं हममे, 
ना थोड़ी भी थी कम
किस्मत से मिला धोखा, 
बेवफ़ा निकले सनम।

बंद पलकों से रिसता...

सोचा था होगी, 
कहीं दर्द-ए-इंतहा
जाने क्यो नही होता, 
ये मेरा दर्द खतम।

खतम हो रही है जिंदगी बस यूं ही
मिलता नही मुझको, कातिल-ए-हमदम।

यादों के लिफ़ाफे 
सीने से लगाए फिरता हूं
दे कोई मुझको आग, 
हो थोड़ा बोझ कम।

कि बंद पलको से रिसता......

सतगुरू शर्मा  
05/04/2023