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छलकती आँखों का सैलाब


छलकती आँखों का सैलाब,
अब तक नही टूटा था।

मेरे दर्द का एक भी कतरा,
अब तक ना आँखों से छूटा था।।

ख़फा हुआ तू मुझसे कई दफ़ा पहले भी,
मगर इस क़दर; हमसे ना कभी रूठा था।

धुंधली आँखों से जो मैने आज देखा है,
कि तेरे सिवा यह जहान; पूरा का पूरा झूठा था।।

एक बेगाने से बहुत कुछ पाया मैने
दुनिया ने तो सिर्फ मुझको लूटा था।

फलक का इक चमकता सितारा था कभी मैं
तुझे पाने की चाह में ही तो टूटा था।।

सतगुरू शर्मा (मासूम)
30 Aug 2017

मनमीत

 
मनमीत हो इक मीत सा,
अनकही इक प्रीत सा।
लब जरा हिले नहीं, शब्द भी मिले नही।
हृदय में उतरता वो, मंद-मंद गीत सा।।

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ना कही कुछ भी बात,
जाने वो मेरे सब दिन-ओ-रात।
मन को मिला ना कोई,
हो जो मन का इक मीत सा

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पढ़ ले जो ख़ुश्बुओं के खत
जिसे पाकर लगे
हो इक हार में, वो जीत सा
मनमीत हो इक मीत सा...

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कह सकूँ मैं..
कह सकूँ मैं जिससे सारी बात ।
हुई जो उनसे मुलाकात,
मुख़्त
र सी गुजरी पूरी रात
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बातों का समंदर
है सीने में समाया।
मुमकिन है कि ना हो...
इक भी लफ़्ज़ की मुलाकात ।।

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 मनमीत हो इक मीत सा
अनकही इक प्रीत सा...

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 दर्द महसूस हो मेरा उसको भी
बिन कहे ही जान ले
कहने को हो ना कोई बात
कभी हो जो मुलाकात।

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सतगुरू शर्मा 
28 अगस्त 2017

अभी-अभी बारिश थमी है


अभी-अभी बारिश थमी है
बंद पलकों में भी थोड़ी सी नमी है... ...

बारिश में आँखों से सब बह आया था
दुखती यादों का जो घना साया था
अब सब धुला-धुला सा है
दर्द भी अब थोड़ा घुला-घुला सा है

कि अभी-अभी बारिश थमी है
बंद पलकों में भी थोड़ी सी नमी है... ...

मन के आसमां में इक सुकूं आया है
हर शाख का हर पत्ता नहाया है,
कड़वी यादों को अश्कों मे बहाकर...2
आज खुद को हमने खुद में पाया है।

कि अभी-अभी बारिश थमी है
बंद पलकों में भी थोड़ी सी नमी है... ...

मन की तपती तंग गलियों में...2
भी अब पानी है।
दर्द का एहसास अब इक कहानी है।
कि अभी-अभी बारिश थमी है

बंद पलकों में भी थोड़ी सी नमी है... ...

सतगुरू शर्मा

एक निगाह तुम्हारे साथ है____

मैं रहूँ कहीं
एक निगाह तुम्हारे साथ है।
हर मुश्किल में यकीनन थामेंगा जो तुम्हें,
हो न हो वो सिर्फ मेरा ही हाथ है।।

जाते देख तुम्हें, कुछ ना बोला मैं
देखते पलटकर मेरी आँखों में;
वो पानी की बूँदें नही
मेरे जज़्बात हैं।

मैं खड़ा हूँ अब भी उसी दो राहे पर
लौटोगे इक रोज तुम...
लौटोगे इक रोज तुम...तो होगा दिन,
नही तो अब बस.. हर जगह रात है।

मेरी कलम से
सतगुरू