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बंद पलकों से रिसता...


बंद पलकों से रिसता मेरा ग़म, 
बंद पलकों से रिसता मेरा ग़म
था खुली आंखों का हसीं ख़्वाब, 
बंद की पलकें हुई आंख नम।

चाहतें, वफाएं हममे, 
ना थोड़ी भी थी कम
किस्मत से मिला धोखा, 
बेवफ़ा निकले सनम।

बंद पलकों से रिसता...

सोचा था होगी, 
कहीं दर्द-ए-इंतहा
जाने क्यो नही होता, 
ये मेरा दर्द खतम।

खतम हो रही है जिंदगी बस यूं ही
मिलता नही मुझको, कातिल-ए-हमदम।

यादों के लिफ़ाफे 
सीने से लगाए फिरता हूं
दे कोई मुझको आग, 
हो थोड़ा बोझ कम।

कि बंद पलको से रिसता......

सतगुरू शर्मा  
05/04/2023

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