Search This Blog



सूर्ख लाल अरमानों से लदा, 
सेमल का पेड़...
हवा के हर-झोके के साथ,
कुछ फूलों को राह पर गिरा रहा है।


जाने-अनजाने में..
लोगों के पाँव तले, कुचलने के लिए!...


मेरे अरमान, मेरी खुशियाँ...

अभी चंद रोज़ ही हुए थे,
बहार को आये हुए
मगर..
मगर वक़्त के बेरहम थपेड़ों को ना सह सके!...
मेरे अरमान, मेरी खुशियाँ...

एक गुलमोहर है,
खुशी से झुमती शाखें, मद्धम-मद्धम झरता...
सुर्ख गुलाल के मानिंद,
महबूब के गालो को चूमता हुआ


और एक मैं हूँ,
तरसता हुआ फ़ागुन लिए ....


सतगुरू शर्मा
8/3/23

No comments:

Post a Comment